स्वार्थ
यह जो आत्यांतिक स्वास्थ्य है, वही पुरुषों का स्वार्थ है। क्षणभंगुर को स्वार्थ नहीं है क्योंकि इन्द्रिय विषय सुख सेवन से उत्तरोत्तर तृष्णा की वृद्धि होती है। ताप की शांति नहीं होती। परोपकार की अपेक्षा न करके आत्मकल्याण के लिए निरंतर मौन धारण करना चाहिए। परोपकार का कार्य ऐसा हो, जो कि एक अपने द्वारा ही सिद्ध होता हो, तो आत्मकल्याण में विरोध न आवे । इस तरह बोलना चाहिए, ये ही स्वार्थ है। महात्मा लोग दूसरों के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझते हैं।