स्वस्त्री
देव-शास्त्र – गुरु को नमस्कार कर तथा अपने भाई बन्धुओं की साक्षी पूर्वक जिस कन्या के साथ विवाह किया जाता है वह विवाहित स्त्री कहलाती है। विवाहिता पत्नि दो प्रकार की होती है – एक तो कर्मभूमि में रूढ़ि से चली आयी अपनी जाति की कन्या से विवाह करना और दूसरी अन्य जाति की कन्या के साथ विवाह करना। अपनी जाति की जिस कन्या के साथ विवाह किया जाता है वह धर्मपत्नि कहलाती है। वह ही यज्ञ, पूजा, प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्यों में और प्रत्येक धर्म कार्यों में साथ रहती है। उस धर्मपत्नि से उत्पन्न पुत्र ही पिता के धर्म का अधिकारी होता है और गोत्र की रक्षा करने रूप कार्य में वह ही समस्त लोक का अविरोधी पुत्र है ।