स्वर्ग
देवों के चार समूहों में एक वैमानिक देव नाम का समूह है। वैमानिक देव उर्ध्वलोक में स्थित विमानों में रहते है। यही स्वर्ग कहलाते है ( उत्तरकुरु में स्थित मनुष्यों के) एक बाल मात्र हीन चार सौ पच्चीस धनुष और एक लाख इकसठ हजार योजन से रहित सात राजू प्रमाण आकाश में ऊपर-ऊपर स्वर्ग पटल स्थित हैं मेरु की चूलिका के ऊपर एक बाल मात्र उत्तरकुरू क्षेत्रवर्ती मनुष्य का के अन्तर से प्रथम इन्द्रक स्थित है लोक शिखर के नीचे चार सौ पच्चीस धनुष और इक्कीस योजन मात्र जाकर अन्तिम इन्द्रक स्थित है शेष इकसठ इन्द्रक पटल इन दोनों के मध्य में है। ये सब रत्नमयी इन्द्रक विमान अनादिनिधन है। स्वर्ग में प्रकार के पटल हैं- कल्प और कल्पातीत । जिनमें इन्द्र आदि की कल्पना है वे कल्प पटल कहलाते हैं। कल्प पटल सोलह हैं। ग्रैवेयक, अनुदिश व अनुत्तर ये तीन कल्पातीत पटल हैं इनमें इन्द्रादि की कल्पना नहीं है क्योंकि ये सब अहमिन्द्र हैं। कल्पवासी और कल्पातीत दोनों प्रकार के स्वर्गों में अग्रमहिषी (शची) और लोकपालों सहित सौधर्म इन्द्र, सभी दक्षिणेन्द्र, सर्वार्थसिद्धिवासी देव तथा लौकान्तिक देव नियम से एक भवावतारी अर्थात आगामी भव में मोक्ष प्राप्त करने वाला है शेष देवों में नियम नहीं है ।