स्वरूपाचरण चारित्र
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निःशंकित आदि गुणों से विशुद्ध अरहंत जिनदेव का श्रद्धान होकर यथार्थ ज्ञान सहित आचरण करे सो प्रथम स्वरूपाचरण चारित्र है। सो यह मोक्षमार्ग में कारण है। जो कर्मों की आस्रव रूप क्रिया का रोधक है वही स्वरूपाचरण है, वही चारित्र नामधारी है, शुद्धोपयोग है, वही धर्म है।
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