स्वरूप विपर्यय
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स्वरूप विपर्यास यथा- रूपादिक निर्विकल्प है, या रूपादिक है ही नहीं, या रूपादिक के आकाररूप से परिणत हुआ ज्ञान, विज्ञान ही है, उसका आलम्बनभूत और कोई बाह्य पदार्थ नहीं है।
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