स्वभाव
1. स्व अर्थात् अपने असाधरण धर्म के द्वारा होना ( परिणमन करना) सो स्वभाव कहा जाता है। 2. अन्तरंग कारण को स्वभाव कहते है अथवा अभ्यन्तर भाव को स्वभाव कहते है। 3. गुण पर्याय रूप होना ही द्रव्य का स्वभाव है स्वभाव दो प्रकार के हैसामान्य और विशेष अस्तित्व, नास्तित्व, नित्य, अनित्य, एक, अनेक, भेद, अभेद, भव्य, अभव्य और परम ये ग्यारह स्वभाव सर्व द्रव्यों के सामान्य स्वभाव है चेतन, अचेतन, मूर्त, अमूर्त, एकप्रदेशी, बहुप्रदेशी, शुद्ध, अशुद्ध, विभाव और उपचरित ये दस स्वभाव द्रव्यों के विशेष स्वभाव हैं। इस प्रकार इक्कीस सामान्य व विशेष स्वभाव है। 4. स्वभाव ‘पर’ से अनपेक्ष ही होता है दूसरे पदार्थ की अपेक्षा न होने से ही वह स्वभाव कहलाता है। धर्मों की अपेक्षा स्वभाव गुण नहीं होते हैं परन्तु स्वद्रव्य आदि चतुष्टय की अपेक्षा परस्पर गुण स्वभाव होते है अर्थात गुण को स्वभाव कह सकते है परन्तु स्वभाव को गुण नहीं। यही गुण और स्वभाव में अन्तर है।