स्वप्न
स्वप्न दो प्रकार के हैं • स्वस्थ अवस्था वाले और अस्वस्थ अवस्था वाले। जो वात, पित्त आदि प्रकोप से रहित अवस्था में देखे जाते हैं वे स्वस्थ अवस्था वाले स्वप्न है स्वस्थ अवस्था में दीखने वाले स्वप्न सत्य होते हैं। जो वात पित्त आदि के प्रकोप से युक्त अवस्था में दिखाई पड़ते हैं वे अस्वस्थ अवस्था वाले स्वप्न हैं जो असत्य होते हैं स्वस्थ अवस्था वाले स्वप्न भी शुभ और अशुभ दो प्रकार के होते हैं। इसके फलस्वरूप सुख दुख आदि को बताना स्वप्ननिमित्तज्ञान कहलाता है स्वप्न में हाथी आदि का दर्शन होना चिन्ह स्वप्न है और पूर्वापर सम्बन्ध रखने वाले स्वप्नों को माला स्वप्न कहते हैं । स्वप्न में भी जाग्रत दशा में अनुभूत पदार्थों का ही ज्ञान होता है इसलिए स्वप्न ज्ञान सर्वथा निर्विषय नहीं है अनुभव किए हुए, देखे हुए, विचारे हुए, सुने हुए, वातपित्त आदि के विकार, दैविक और जल प्रधान प्रदेश आदि स्वप्न में कारण होते है। सुख निद्रा आने से पुण्य रूप और सुख निद्रा न आने से पाप रूप स्वप्न दिखाई देते है। अतः स्वप्न सर्वथा अवस्तु नहीं है। तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न, चक्रवर्ती की माता के छह स्वप्न, नारायण की माता के सात स्वप्न, भरत चक्रवर्ती के सोलह स्वप्न और राजा श्रेयांस के सात स्वप्न प्रसिद्ध है। तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न व उनका फल इस प्रकार है1 – हाथी के देखने से उत्तम पुत्र होगा। 2 – उत्तम वृषभ के देखने से समस्त लोक में ज्येष्ठ होगा। 3–सिंह के देखने से अनन्त बल से युक्त होगा। 4 – मालाओं के देखने से समीचीन धर्म का प्रवर्तक होगा। 5–-लक्ष्मी के देखने से सुमेरु पर्वत के मस्तक पर देवों द्वारा अभिषेक होगा। 6 – पूर्ण चन्द्रमा के देखने से लोगों को आनंद देने वाला होगा । 7 – सूर्य को देखने से आभावान होगा। 8 – कलश युगल देखने से अनेक निधियों का स्वामी होगा। 9- मीन युगल देखने से सुखी होगा। 10- सरोवर देखने से अनेक लक्षणों से शोभित होगा । 11 – समुद्र देखने से केवली होगा। 12 – सिंहासन देखने से जगद्गुरु होगा। 13 – देवविमान देखने से स्वर्ग से अवतीर्ण होगा। 14 – नागेन्द्र का भवन देखने से अवधि ज्ञान से युक्त होगा। 15 – रत्नराशि देखने से गुणों का भंड़ार होगा। 16 – निर्धूम अग्नि देखने से कर्म रुपी ईधन जलाने में सक्षम होगा।