स्वच्छंद
जो मुनि होकर उत्कृष्ट सिंहवत् हुआ निर्भय आचरण करता है और बहुत परिकर्म कहिए, तपश्चरण आदि क्रिया कर युक्त है, तथा गुरु के भार वाला है। अर्थात् बड़े पद वाला है। संघ नायक कहलाता है और जिन सूत्र से च्युत हुआ स्वच्छंद प्रवर्तता है। तो वह पाप ही को प्राप्य होय है, मिथ्यात्व को प्राप्त होय है। जो लिंगधारी पिण्ड अर्थात् आहार के लिए दौड़े हैं। आहार के लिए कलह करके उसे खाता है तथा उसके निमित्त परस्पर अन्य से ईर्ष्या करता है। वह श्रमण जिनमार्गी नहीं है।