स्वचतुष्टय
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द्रव्य के द्वारा, क्षेत्र के द्वारा, काल के द्वारा और भाव के द्वारा जो है वह परद्रव्य क्षेत्रादि से नहीं है, इस प्रकार अस्ति – नास्ति आदि का चतुष्टय हो जाता है। जो अस्ति है वह अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से ही है इतर द्रव्यादि में नहीं।
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