स्थितिकल्प
साधु के दस स्थितिकल्प कहे गए हैंके 1. अचेलकत्व अर्थात् सब प्रकार के वस्त्र आवरण से रहित अवस्था । 2. उद्दिष्ट आहार का त्याग । 3. शय्याग्रह अर्थात् वसतिका बनवाने या सुधरवाने वाले के आहार का त्याग । 4. राजपिंड अर्थात् अमीरों व राजाओं के आहार का त्याग । 5. कृतिकर्म अर्थात् साधुओं की विनय, सेवा आदि करना । 6. व्रत अर्थात् जिसे व्रत का स्वरूप मालूम है उसे ही व्रत देना । 7. ज्येष्ठ अर्थात् अपने से अधिक की योग्य विनय करना । 8 प्रतिक्रमण अर्थात् नित्य होने वाले दोषों का शोधन। 9. मासैकवासता अर्थात् छहों ऋतुओं में से एक-एक मास पर्यन्त एकत्र साधुओं का निवास । 10. पद्य अर्थात् वर्षाकाल में चार मास पर्यन्त एक स्थान पर निवास ।