स्थितिकरण
धर्म से विचलित होने के निमित्त मिलने पर भी अपने धर्म से च्युत नही होना उसका सदा पालन करना स्थितिकरण है अथवा चार प्रकार के संघ में से यदि कोई दर्शनमोहनीय के उदय से दर्शन या चारित्र मोहनीय के उदय से चारित्र को छोड़ने की इच्छा करे तो यथाशक्ति शास्त्रानुकूल धर्मोपदेश से धन से या सामर्थ्य से या अन्य किसी उपाय से उसको धर्म में स्थिर कर देना यह स्थितिकरण है।