स्थापना निक्षेप
स्थापना निक्षेप के दो भेद हैं । सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना। भाव निक्षेप के द्वारा कहे गये अर्थात् वास्तविक पर्याय से परिणत इन्द्रादि के समान बनी हुई काष्ठ आदि की प्रतिमाओं में आरोपे हुए उन इन्द्रादि की स्थापना करना सद्भाव स्थापना है क्योंकि किसी अपेक्षा से इन्द्रादि का सादृश्य यहाँ विद्यमान है तभी तो ‘यह वहीं है’ ऐसी बुद्धि हो जाती है। मुख्य आकारों से शून्य केवल वस्तु में यह वही है’ ऐसी स्थापना कर लेना असद्भाव स्थापना है, क्योंकि मुख्य पदार्थ को देखने वाले जीव की दूसरे के उपदेश से ही ‘यह वही है’ ऐसा समीचीन ज्ञान होता है, पर उपदेश के बिना नहीं । (स्थापना के उपर्युक्त काष्ठ कर्म आदि भेदों में से) काष्ठ कर्म से लेकर भेंडकर्म तक जितने कर्म निद्रिष्ट हैं, उनके द्वारा सद्भाव स्थापना कही गई है और आगे जितने अक्ष वराटकादि कहे गये हैं, उनके द्वारा असद्भाव निद्रिष्ट की गई है।