समवदान
समवदान शब्द में सम और अव उपसर्ग पूर्वक ‘दाप्लवने’ धातु हैं। जिसका व्युत्पाति अर्थ है जो यथा विधि विभाजित किया जाता है, वह समवदान कहलाता है और समवदान ही समवदानता कहलाती है। कार्मण पुद्गलों का मिथ्यात्व, असंयम, योग और कषाय के निमित्त से आठ कर्म रूप, सात कर्मरूप और छ:कर्म रूप भेद करना समवदान है। यह उक्त कथन का तात्पर्य है । अतः सात प्रकार के आठ प्रकार के और छः प्रकार के कर्म का भेदरूप से ग्रहण होता है, अतः वह सब समदानता है।