संस्थान विचय
तीनों लोक के आकार प्रकार, प्रमाण और आयु आदि का चिन्तवन करना संस्थान विचय नाम का चौथा धर्मध्यान है अथवा अधोलोक आदि रूप तीन प्रकार के लोक का तथा पृथिवी, वलय, द्वीप, सागर, नगर विमान, भवन आदि के संस्थानों (आकृति) का एवं उसका आकाश में प्रतिष्ठान, नियत और लोक स्थिति आदि भेद का चिन्तन करना संस्थान विचय नामक धर्मध्यान है। इस ध्यान के पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ऐसे चार भेद हैं । मन्त्र वाक्यों का चिन्तन करना पदस्थ, निजात्मा का चिन्तवन करना पिंडस्थ, सर्वचिद्रूप का चिन्तवन करना रूपस्थ और निरंजन सिद्धों का ध्यान करना रूपातीत ध्यान है इन चार भेदों में पिंडस्थ ध्यान करने वाला साधक अर्हन्त भगवान की शरीराकृति का विचार करता है पदस्थ ध्यान में पंचपरमेष्ठी वाचक अक्षरों व मंत्रों का अनेक प्रकार से विचार करता है रूपस्थ ध्यान में निजशुद्धात्मा पुरुषाकार रूप से विचार करता है और रूपातीत ध्यान विचार व चिन्तवन से अतीत मात्र ज्ञाता दृष्टा रूप से ज्ञान का अनुभवन है। इनमें से पहले तीन ध्यान तो धर्मध्यान में गर्भित है और चौथा ध्यान पूर्ण निर्विकल्प होने से शुक्लध्यान रूप है । इस प्रकार संस्थान विचय धर्मध्यान का विषय बहुत व्यापक है।