व्रत
हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह से निवृत होना व्रत है अथवा प्रतिज्ञा करके जो नियम लिया जाता है वह व्रत है। जैसे- यह करने योग्य है तथा यह नहीं करने योग्य है इस प्रकार नियम करना व्रत अथवा प्राणियों पर दया करना बहिरंग व्रत है कषायों का त्याग करने रूप स्वदया अंतरंग व्रत है। व्रत दो प्रकार से ग्रहण किए जाते हैंअणुव्रत व महाव्रत । हिंसा आदि से एक देश अर्थात् आंशिक रूप से निवृत होना अणुव्रत है तथा हिंसादि से पूर्णतः निवृत होना महाव्रत है । अणु शब्द का अर्थ अल्प है जिसके व्रत अणु अर्थात अल्प है वह अणुव्रत वाला गृहस्थ है जो महान् मोक्षरूप अर्थ की सिद्धि करते हैं। महान् तीर्थंकर आदि पुरुषों ने इनका -पालन किया है सब पाप योगों का त्याग होने से स्वतः महान है, पूज्य है इसलिए मुनियों के द्वारा ग्रहण करने योग्य इन व्रतों का नाम महाव्रत है।