व्यापार
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“व्याप्रतिर्व्यापार” इस व्यावृत्ति के अनुसार अर्थ प्राप्त करने की समर्थ क्रिया प्रयोग को व्यापार कहते हैं। वे चित्तचमत्कार मात्र जो ज्ञाता दृष्टा भाव, उससे प्रतिपक्षभूत आरम्भ का नाम व्यापार है।
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