व्याघात
काययोग के काल के क्षय से मनोयोग को प्राप्त होकर द्वितीय समय में व्याघात (मरण ) को प्राप्त हुए उसको फिर भी काययोग ही प्राप्त हुआ । क्रोध से व्याघात से एक समय नहीं पाया जाता क्योंकि व्याघात को प्राप्त होने पर भी पुनः क्रोध की ही उत्पत्ति होती है। जहाँ स्थिति काण्डक घात हो उसे व्याघात कहते हैं ।