व्यन्तर
भूत, पिशाच आदि जाति के देवों को जैनागम में व्यन्तर – देव कहा गया है। इनका निवास अधिकतर मध्यलोक में खंडहर आदि सूने स्थानों में रहता है। मनुष्य व तिर्यंचों के शरीर में प्रवेश करके ये देव उन्हें लाभ-हानि पहुँचा सकते हैं। अन्य देवों के समान इनका भी बहुत वैभव और परिवार आदि होता है। किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, ये आठ प्रकार के राक्षस, भूत और पिशाच व्यन्तर – देव हैं। व्यन्तरों के भवन, भवनपुर और आवास ऐसे तीन प्रकार के निवास कहे गए हैं इनमें से चित्रा पृथिवी के खर भाग व पंक भाग में भवन, द्वीप व समुद्रों के ऊपर भवनपुर तथा तालाब व पर्वत आदि के ऊपर आवास होते हैं। मध्यलोक में इनका निवास वट के वृक्षों पर छोटे-छोटे गड्ढों में, पहाड़ों के शिखर पर, वृक्षों की खोलों और पत्तों की झोपड़ियों में भी होते हैं। ये देव दिन-रात भ्रमण करने वाले होते हैं। –