वैयावृत्य
गुणों में अनुरागपूर्वक संयमी पुरूषों के खेद को दूर करना, पाँव दबाना तथा और भी जितना कुछ उपकार करना है वह वैयावृत्य कहलाता है अथवा संयमी जनों के प्रति आपत्ति के समय उसके निवारणार्थ जो किया जाता है वह वैयावृत्य नाम का तप है। गुणीजनों के ऊपर दुःख आ पड़ने पर निर्दोष विधि से उनका दुःख दूर करना वैयावृत्य भावना है यह सोलहकरण भावना में से एक भावना है। आचार्य उपाध्याय, तपस्वी शैक्ष, ग्लान (रोगी), गण, कुल, संघ, साधु और मनोज्ञ इनकी वैयावृत्य के भेद से वैयावृत्य दस प्रकार का है।