वैभाविक शक्ति
सत् की सब शक्तियाँ जब परिणमन स्वभावी है तो फिर यह वैभाविक शक्ति भी नित्य परिणामिकी क्यों न होगी। कोई शक्ति तो परिणामी हो और कोई अपरिणामी इस प्रकार के उदाहरण तथा उसके ग्राहक प्रमाण का अभाव है। इसलिए ऐसा मानना योग्य है कि वैभाविकी शक्ति सम्पूर्ण कर्मों का अभाव होने पर अपने भावों में ही स्वयं स्वाभाविक परिणमनशील हो जाती है।