वैनयिक मिथ्यात्व
सब देवता और सब मतों को एक समान मानना वैनयिक मिथ्यात्व है अथवा ऐहिक और पारलौकिक सुख सभी विनय से ही प्राप्त होते हैं न कि ज्ञान, दर्शन, तप और उपवास जनित क्लेशों से – ऐसे अभिनिवेश का नाम वैनयिक मिथ्यात्व है वैनयिक मिथ्यादृष्टि का मानना है कि देव, राजा, ज्ञानी, यति, वृद्ध, बालक, माता, पिता इन आठों की मन, वचन, काय व दान इन चारों प्रकार से विनय करनी चाहिए। इसलिए मन, वचन, काय व दान इन चार का देव, राजा आदि आठ भेदों के साथ संयोग करने पर वैनयिक मिथ्यादृष्टियों के 32 भेद हो जाते हैं। वैनयिक तथा संशय मिथ्यादृष्टि सभी देवों में तथा सब शास्त्रों में से किसी एक की भी भक्ति के परिणाम से मुझे पुण्य होगा ऐसा मानकर, संशयरूप से भक्ति करता है उसको किसी एक देव में निश्चय नहीं होता और मिश्र गुणस्थानवर्ती (सम्यग्गमिथ्यादृष्टि) जीव के दोनों में ही निश्चित है। यही दोनों में अन्तर है। –