वेदनीय कर्म
जो वेदन कराता है या जिसके द्वारा वेदन (अनुभव) किया जाता है वह वेदनीय कर्म है। | वेदनीय कर्म का स्वभाव सुख व दुख का संवेदन कराना है वेदनीय कर्म की दो प्रकृतियाँ है सातावेदनीय और असातावेदनीय । जिसके उदय से देव आदि गतियों में शरीर व मन सम्बन्धी सुख की प्राप्ति होती है वह सातावेदनीय है जिसके फलस्वरुप अनेक प्रकार के दुख मिलते है वह असातावेदनीय है अथवा इष्ट पदार्थ के समागम और अनिष्ट पदार्थ के वियोग का नाम सुख है तथा अनिष्ट पदार्थ के समागम और इष्ट पदार्थ के वियोग का नाम दुख है अथवा सिर की वेदना आदि का नाम दुख है उक्त वेदना का शान्त हो जाना या इसका उत्पन्न ही न होना दुखों की शान्ति में कारणभूत द्रव्य आदि की प्राप्ति होना इसे सुख कहा जाता है उसमें वेदनीय कर्म निबद्ध है। इस प्रकार सुख और दुख के वेदन में कारणभूत तथा सुख दुख के कारणभूत द्रव्यों का सम्पादन करने वाला वेदनीय कर्म है अतः वेदनीय कर्म जीव विषय का पुद्गल स्थान होता है।