वीर्य
द्रव्य की अपनी शक्ति विशेष का नाम वीर्य है। अथवा निर्विकार आत्मा का जो उत्साह या कृतकृत्य स्वरूप बुद्धि उसे ही वीर्य कहते है । क्षायोपशिक और क्षायिक के भेद से वीर्य दो प्रकार का है। वीर्यान्तराय कर्म के अत्यन्त क्षय से क्षायिक वीर्य प्रगट होता है। केवलज्ञान के विषय में अनन्त पदार्थों को युगपत जानने की जो शक्ति है वही अनंत या क्षायिक वीर्य है। जीवों के वीर्यान्तराय का क्षयोपशम होने ज्ञान व चारित्र आदि धारण की शक्ति में निमित्त भूत क्षायोपशिक वीर्य है।