विससोपचय
जो विस्रसा अर्थात् आत्म परिणाम से निर अपने स्वभाव से ही उपचीयन्ते अर्थात् मिलते हैं वे परमाणु विस्रसोपचय कहलाते हैं कर्म और नो कर्म के जितने परमाणु जीव के प्रदेशों के साथ सम्बन्ध हैं उनमें से एक-एक परमाणु के प्रति जीवराशि के अनंतानंत गुणे विस्रसोपचय रूप परमाणु जीव प्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावगाही रूप से स्थिति है कर्म व नोकर्म रूप परिणमें बिना जो उनके साथ स्निग्ध व रूक्ष गुण के द्वारा एक स्कन्ध रूप होकर रहते हैं वे विस्रसोपचय है अर्थात् कर्म और नोकर्म रूप परिणमन करने के लिए जो उम्मीदवार की तरह हैं वे विस्रसोपचय हैं ऐसा भाव है ।