विसंयोजना
अनंतानुबन्धी क्रोध मान, माया और लोभ को पर प्रकृति रूप अर्थात् अप्रत्याख्यान आदि बारह कषाय और हास्य आदि नौ कषाय रूप परिणमा देने को विसंयोजना कहते हैं। सम्यग्दृष्टि जीव ही विसंयोजना करता है मोहनीय कर्म की समस्त अठ्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता वाला जीव अनंतानुबन्धी की विसंयोजना कर देने पर चौबीस प्रकृतियों की सत्ता वाला होता है। यदि ऐसा जीव मिथ्यात्व को प्राप्त हो तो ऐसे जीव के मिथ्यात्व को प्राप्त होने के प्रथम समय में ही चारित्र मोहनीय के कर्म स्कन्ध अनंतानुबन्धी रूप से परिणत हो जाते हैं अतः उसके चौबीस प्रकृतियों की सत्ता न रहकर अठ्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता पायी जाती है।