विविक्त शय्यासन
निर्बाध ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय और ध्यान आदि की सिद्धि के लिए साधु के द्वारा जो प्राणियों की पीड़ा से रहित एकान्त शून्यघर आदि में शय्यासन लगाया जाता है, वह विविक्त शय्यासन नाम का तप है अथवा जो मुनि रागद्वेष को उत्पन्न करने वाले आसन शय्या आदि का परित्याग करता है, अपने आत्मस्वरूप में रमता है और इन्द्रियों के विषयों से विरक्त रहता है, उसके विविक्त शय्यासन नाम का तप होता है अथवा अपनी पूजा महिमा को नहीं चाहने वाला, संसार शरीर और भोगों से उदासीन, प्रायश्चित्त आदि अभ्यन्तर तप में कुशल, शान्त परिणामी, क्षमावान, महा पराक्रमी जो मुनि शमशान भूमि में, गहन वन में, निर्जन महाभयावह स्थान में अथवा किसी अन्य एकान्त स्थान में निवास करता है उसके विविक्त शय्यासन तप होता है।