विभाव
स्वभाव से अन्यथा परिणमन करना विभाव है आत्मा के गुणों का कर्मरूप पुद्गलों के गुणों के आकार रूप कथंचित् संक्रमण होना वैभाविक भाव कहलाता है राग, द्वेष, मोह आदि भाव जीव के वैभाविक भाव हैं जिस प्रकार स्त्री व पुरुष दोनों से उत्पन्न हुआ पुत्र कथंचित् विवक्षावश माता का भी कहा जाता है और पिता का भी कहा जाता है। दोनों ही प्रकार से कहने में कोई दोष नहीं है। उसी प्रकार जीव व पुद्गल के संयोग से उत्पन्न मिथ्यात्व, रागादि भाव अशुद्ध निश्चयनय से अशुद्ध उपादान रूप से चेतना रूप है जीव से संबद्ध है और शुद्ध निश्चय नय से शुद्ध उपादान रूप से अचेतन है पौद्गलिक हैं परमार्थ से तो न वे एकान्त से जीव रूप हैं और न पुद्गल रूप ।