विदेह
विगत देह अर्थात् देहरहित सिद्ध भगवान विदेह कहलाते हैं अथवा देह के होते हुए भी जो शरीर के संस्कारों से रहित है ऐसे अर्हन्त भगवान विदेह हैं। उनके संयोग से उस देश को भी विदेह कहते हैं। वहाँ रहने वाले मनुष्य देह का उच्छेद करने के लिए यत्न करते हुए विदेहत्व को प्राप्त किया करते हैं वहाँ धर्म की धारा अबाध रूप से सदा बहती है इसलिए वहाँ सदा विदेही जन ( अर्हन्त भगवान ) रहते हैं। यह क्षेत्र निषध और नील पर्वतों के अन्तराल में है इसके बहुमध्य भाग में एक सुमेरु व चार गजदन्त पर्वत है जिनसे रोका गया भूखण्ड उत्तरकुरु व देवकुरु कहलाते हैं। इनके पूर्व व पश्चिम में स्थित क्षेत्रों को पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह कहते हैं । यह दोनों ही विदेह चार-चार वक्षार गिरियों तीन तीन विभंगा नदियों और सीता व सितोदा नाम की महानदियों द्वारा 16-16 देशों में विभाजित कर दिखाए हैं इन्हें ही 32 विदेह कहते हैं। एक-एक सुमेरु सम्बन्धी 32-32 विदेह हैं । पाँच सुमेरु सम्बन्धी कुल 160 विदेह क्षेत्र होते हैं। विदेह क्षेत्र में उपरोक्त सर्व देश अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूसा टीडी, सूवा (तोता) अपनी सेना व पर की सेना इन सात प्रकार की ईतियों से रहित है रोग मरी आदि से रहित कुदेव, कुलिंगी और कुमार्ग से रहित है। केवलज्ञानी, तीर्थंकर आदि शलाका पुरुष और ऋद्धिधारी मुनियों से सदा पूर्ण रहते हैं। तीर्थंकर चक्रवर्ती व अर्धचक्री नारायण व प्रतिनारायण ये यदि अधिक से अधिक होवे तो प्रत्येक देश में एक-एक होते हैं और इस तरह कुल 160 होते हैं यदि कम से कम होवें तो सीता सीतादो के दक्षिण और उत्तर तटों पर एक-एक होते हैं इस प्रकार एकविदेह में चार और पाँचों विदेहों में 20 होते हैं। पाँचों भरत व पाँचों ऐरावत के मिलाने पर उत्कृष्ट रूप से 170 होते हैं ।