विक्रिया
अणिमा, महिमा आदि गुणों केसम्बन्ध से एक, अनेक, छोटा, बड़ा आदि अनेक प्रकार का शरीर बनाना विक्रिया कहलाती है। वह विक्रिया दो प्रकार की है— एकत्व व पृथकत्व | अपने ही शरीर को सिंह, व्याघ्र, हिरण, हंस आदि रूप से बना लेना एकत्व विक्रिया है और शरीर से भिन्न मकान, मण्डप आदि बना देना पृथकत्व विक्रिया है देव व नारकी जीवों के तेजस्कायिक, वायुकायिक जीवों में सब चक्रवर्ती के विक्रिया की सामर्थ्य जन्म से ही होती है। अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान और काम रूपित्व इस प्रकार अनेक प्रकार के भेदों से उक्त विक्रिया नामक ऋद्धि तपो विशेष से श्रमणों को प्राप्त होती है।