वासना काल
उदय का अभाव होने पर भी जो कषाय का संस्कार जितने काल तक रहे उसका नाम वासनाकाल है संज्वलन क्रोध, मान, माया व लोभ का वासना काल अन्तर्मुहूर्त काल है प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया व लोभ का वासना काल एक पक्ष है अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया व लोभ का वासना काल छह मास है। अनंतानुबन्धी क्रोध, मान, माया व लोभ का संख्यात भव, असंख्यात भव, अनंत भव पर्यन्त वासना काल है। जैसे- किसी व्यक्ति ने क्रोध किया फिर क्रोध मिट गया और वह व्यक्ति अन्य किसी कार्य में लग गया सो वहाँ उसके क्रोध का उदय तो नहीं है परन्तु जब तक जिस व्यक्ति पर क्रोध किया है उसके प्रति क्षमाभाव रूप परिणाम नहीं होता तब तक वह क्रोध का वासना काल कहलाता है। ऐसा ही सभी कषायों में जानना चाहिए।