वारूणी धारणा
वारुणी धारणा के उपरान्त वही ध्यानी मुनि इन्द्रधनुष, बिजली, गर्जनादि सहित बादलों के समूह से भरे हुए आकाश का ध्यान करे तथा उन बादलों को अमृत से उत्पन्न हुए मोतियों के समान उज्ज्वल बड़ी-बड़ी बूंदों से निरन्तर धाररूप बरसते हुए आकाश का स्मरण करे तत्पश्चात् अर्धचन्द्राकार, मनोहर अमृतमय जल के प्रवाह से आकाश को बहाते हुए वरुण मण्डल का चिन्तवन करे। अचिन्त्य है प्रभाव जिसका ऐसे दिव्य ध्यान से उत्पन्न हुए जल से (आग्नेयी धारणा के समय शरीर के जलने से उत्पन्न हुए) समस्त भस्म को प्रक्षालित करता है ऐसा चिन्तवन करे यह वारूणी धारणा है।