वसतिकातिचार
वसतिका का तृण कोई पशु खाता हो तो उसका निवारण करना । वसतिका भंग होती है तो उसका निवारण करना । बहुत से व्यक्ति मेरी वसतिका में नहीं ठहर सकते, ऐसा कहना बहुत मुनि प्रवेश करने लगें तो उनपर क्रुद्ध होना । बहुत यतियों को वसतिका मत दो, ऐसा कहना । वसतिका की सेवा करना, अथवा अपने कुल के मुनियों से सेवा कराना । निमित्तादिकों का उपदेश देना, ममत्व से ग्राम नगर अथवा देश में रहने का निषेध न करना, अपने सम्बन्धियों यतियों के सुख से अपने को सुखी और उनके दुःख से अपने को दुःखी समझना । इस प्रकार के अतिचार वसतिका सम्बन्धी हैं।