वचन गुप्ति
वचन गुप्ति के दो लक्षण बताये गये हैं-दुर्वचना का त्याग व मौन धारण । यहाँ उन्हीं की अपेक्षा वचन गुप्ति के दो प्रकार से अतिचार बताए गए है। भाषा समिति के प्रकरण में बताए गए कर्कशादि वचनों का उच्चारण अथवा विकथा करना यह पहिला अतिचार है और मुख से हुंकरादि द्वारा अथवा खकार करके यद्वा हाथ और भृकुटि चालन क्रियाओं के द्वारा इंगित करना दूसरा अतिचार है। पाप के हेतुभूत ऐसे स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भक्तकथा इत्यादि रूप वचनों का परिहार अथवा असत्यादिक की निवृत्ति वाले वचन, यह वचन गुप्ति है। भले प्रकार वशकरी है वचनों की प्रवृत्ति जिसने ऐसे मुनि के तथा संज्ञादि का त्याग करना मौन रूढ़ होने वाले महामुनि के वचन गुप्ति होती है।