वचन
शुभ और अशुभ के भेद से वचन दो प्रकार के होते हैं। आख्यान, कला, पैशून्य, असम्बद्ध प्रलाप, रति, अरति, उपधि, निकृति, अप्रणति, मोष सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन के भेद से भाषा बारह प्रकार की है । हिंसादि से विरक्त मुनि या श्रावक को हिंसादि का दोष लगाना अभ्याख्यान है। कला का अर्थ स्पष्ट ही है। पीठ पीछे दिखाना ही पैशून्य है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थों के संबंध से रहित असंबद्ध प्रलाप है। इन्द्रियों शब्दादि विषयों में या देशना आदि में रति उत्पन्न करने वाला रति वाक् है । इन्ही में अरति उत्पन्न करने वाला अरति वाक् है । जिसे सुनकर परिग्रह के अर्जन रक्षण आदि में आसक्ति उत्पन्न हो, वह उपधि वाक् है। जिससे व्यापार में ठगने को प्रोत्साहन मिले, वह निकृति वाक् है । जिसे सुनकर तपोधनी या गुणी जीवों के प्रति अविनय की प्रेरणा मिले वह अप्रणति वाक् है। जिसे चोरी में प्रवृत्ति हो वह मोष वाक् है । सम्यग्दर्शन प्रवर्तक उपदेश सम्यग्दर्शन वाक् है। मिथ्यामार्ग प्रवर्तक उपदेश मिथ्यादर्शन वाक् है। कर्कश वचन, निष्ठुर भाषण, पैशुन्य वचन, उपहास का वचन जो कुछ भी बड़-बड़ करना ये सब गर्हित वचन है। जिन वचनों से प्राणीवध आदि दोष उत्पन्न हो अथवा बिना विचारे बोले गए प्राणियों की हिंसा के कारणभूत वचन सावद्य वचन है। पौरुष वचन जैसे- तू दुष्ट है, कटु बैर उत्पन्न करने वाले वचन, कलहकारी वचन, भयकारी या त्रासकारी वचन दूसरे की अवज्ञाकारी वचन यह अप्रिय वचन है। वचन,