लौकान्तिक
लौकान्तिक शब्द में जो लोक शब्द है उसका अर्थ ब्रह्म स्वर्ग लिया गया है और उसका अन्त अर्थात बाहरी भाग लोकान्त कहलाता है वहाँ जो रहते हैं, वे लौकान्तिक कहलाते हैं । अथवा जन्म, जरा व मरण से व्याप्त संसार को लोक कहा गया है और इसका अन्त लोकान्त कहलाता है। इस प्रकार संसार का अन्त जिनके निकट है वे लौकान्तिक हैं। ये देव स्वतन्त्र होते हैं अर्थात् इनमें हीनाधिकता का अभाव है तथा विषय रति से रहित होने के कारण ये देव- ऋषि हैं दूसरे देव इनकी अर्चा करते हैं ये चौदह पूर्व के ज्ञाता होते हैं ये सतत ज्ञान भावना में लीन, संसार से उद्विग्न, अनित्यादि भावनाओं के भाने वाले अतिविशुद्ध सम्यग्दृष्टि होते हैं। वैराग्य कल्याणक के समय तीर्थंकरों को सम्बोधन करने में तत्पर हैं सभी लौकान्तिक देव एकभवावतारी अर्थात् स्वर्ग से आकर एक भव धारण करके निर्वाण को प्राप्त होते हैं।