लब्धि
1. लब्धि का अर्थ है प्राप्त होना जिसके संसर्ग से जीव द्रव्येन्द्रिय की रचना करने के लिए उद्यत होता है ऐसे ज्ञानावरण के क्षयोपशम विशेष को लब्धि कहते हैं अथवा जीव के जो ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न हुई हो विशुद्धि और उससे उत्पन्न पदार्थों को ग्रहण करने की जो शक्ति है उसको लब्धि कहते हैं । 2. तप विशेष से प्राप्त होने वाली ऋद्धि को लब्धि कहते हैं अथवा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र में जो जीव का समागम होता है उसे लब्धि कहते हैं । अर्हन्त और सिद्ध दशा में जीव के क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान और क्षायिक चारित्र ये नव केवल लब्धियाँ होती हैं। उपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में कारणभूत पाँच लब्धियाँ हैं- क्षयोपशम लब्धि, विशुद्धि लब्धि, देशना लब्धि, प्रायोग्य लब्धि और करण लब्धि। इसमें से पहली चार तो सामान्य है अर्थात् भव्य – अभव्य दोनों के होती है किन्तु करणलब्धि सम्यकत्व होने के समय भव्य जीव के ही होती है।