यज्ञोपवीत
यज्ञोपवीत सात परम स्थानों का सूचक है गर्भ से आँठवे वर्ष में ब्रह्मचर्याश्रम में अध्यय- नार्थ प्रवेश करने वाले बालक के वक्षस्थल का चिन्ह सात तार वाला गूंथा हुआ यज्ञोपवीत है। तीन तार का जो यज्ञोपवीत है वह जैन श्रावक का द्रव्य सूत्र है तथा हृदय में उत्पन्न हुए सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूपी गुणों से बना हुआ श्रावक का भावसूत्र है भरत चक्रवर्ती ने श्रावकों को ग्यारह प्रतिमाओं के विभाग से व्रतों के चिन्ह स्वरूप एक से लेकर ग्यारह तक सूत्र दिए हैं।