भूमि
लोक में जीवों के निवासस्थान को भूमि कहते हैं। नरक की सात भूमियाँ प्रसिद्ध है, इसके अतिरिक्त अष्टम भूमि भी मानी गयी है। नरकों के नीचे निगोद की निवास भूत कलकल नाम की पृथ्वी अष्टम पृथ्वी है और ऊपर लोक के अन्त में मुक्त जीवों की आवास भूत ईषत्प्राग्भार नाम की अष्टम पृथ्वी है। मध्यलोक में मनुष्य और तिर्यंचों को निवासभूत दो प्रकार की रचनाएँ हैं, भोगभूमि और कर्मभूमि । जहाँ के निवासी स्वयं खेती आदि षट्कर्म करके अपनी आवश्यकताएँ पूरी करते हैं, उसे कर्म भूमि कहते हैं। जहाँ दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त हुई भोगों के उपभोग की मुख्यता है, उनको भोगभूमि जानना चाहिए। भोगभूमि में नगर, कुल, असि, मसि आदि क्रिया, शिल्प, वर्णाश्रम की पद्धति नहीं होती है। यहाँ मनुष्य और स्त्री पूर्व पुण्य से पति-पत्नि होकर रमयमाण होते हैं। वे सदा नीरोग रहते हैं ओर सुख भोगते हैं। यहाँ के लोग स्वभाव से मृदुपरिणामी अर्थात् मन्द कषायी होते हैं, इसलिए मरणोत्तर उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। भोगों में रहने वाले मनुष्यों को भोगभूमिज कहते हैं। सब भोगभूमिज तिर्यंचों के संकल्पवश से केवल एक सुख ही होता है और कर्म भूमिज तिर्यचों के सुख और दुःख दोनों की कल्पना होती है। भरत, ऐरावत व विदेह ये तीन कर्म भूमियाँ हैं। इस प्रकार पाँच मेरु सम्बन्धी 15 कर्म भूमियाँ हैं । यदि पाँच विदेहों के 32-32 क्षेत्रों की गणना की जाए तो पाँच भरत, पाँच ऐरावत और 160 विदेह इस प्रकार कुल 170 कर्मभूमियाँ होती है। भरत, ऐरावत क्षेत्रों के आर्यखण्डों में षट्काल परिवर्तन होता है। सभी म्लेक्षखण्डों में सदा जघन्य भोग भूमि (सुषमा- दुषमा काल) होती है । हेमवत और हैरण्यवत इन दो क्षेत्रों में सदा जघन्य भोगभूमि रहती है। हरि और रम्यक इन दो क्षेत्रों में सदा मध्यम भोगभूमि (सुषमाकाल) रहती है। विदेह के भू-भाग में सुमेरु पर्वत के दोनों तरफ स्थिति उत्तर कुरु और देवकुरु सदैव उत्तम भोगभूमि ( सुषमा – सुषमा काल) रहती है। इसी प्रकार 160 विदेहों में वैसे प्रत्येक के 56–56 अन्तर्द्वीप इन सब अन्तर्द्वीप में कुमानुष रहते है इन सभी अन्तर्द्वीपों में सदा जघन्य भोगभूमि वर्तती है। भोगभूमि में जलचर और विकलेन्द्रिय जीव नहीं होते हैं। केवल संज्ञी पंचेन्द्रिय ही होते है। विकलेन्द्रिय और जलचर जीव नियम से कर्मभूमि में होते है। भोगभूमि में संयत न संयतासंयत मनुष्य या तिर्यंच भी नहीं होते। परन्तु पूर्व बैर के कारण देव द्वारा ले जाकर डाले गये जीव वहाँ सम्भव है भोगभूमि में यद्यपि ज्ञानदर्शन तो होता है, परन्तु भोगपरिणाम होने से चारित्र नहीं होता।