भिन्नदशपूर्वी
उनमें ग्यारह अंगों को पढ़कर पश्चात परिकर्म, सूत्र प्रथमानुयोग पूर्वगत और चूलिका इन पाँच अधिकारों में निबद्ध दृष्टिवाद के पढ़ते समय उपपाद पूर्व को आदि करके पढ़ने वाले दशमपूर्व विद्यानुवाद से समाप्त होने पर अंगुष्ठ प्रसेनादि 700 क्षुद्र विद्याओं से अनुगत रोहिणी आदि 500 महा विद्यायें “भगवान क्या आज्ञा देते हैं” ऐसा कहकर उपस्थित होते हैं। इस प्रकार उपस्थित हुए सब विद्याओं के लोभ को प्राप्त होता है और वह भिन्नदशपूर्वी है।