भावलेश्या
भावलेश्या कषाय से अनुरंजित मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। मोहनीय कर्म के उदय, क्षयोपशम, उपशम अथवा क्षय से उत्पन्न हुआ जो जीव का स्पन्द सो भाव लेश्या । कोई पुरुष वृक्ष को जड़मूल से उखाड़कर कोई स्कन्ध से काटकर, कोई गुच्छों से तोड़कर, कोई शाखा को काटकर, कोई फलों को चुनकर, कोई गिरे हुए फलों को बीनकर खाना चाहे तो उनके भाव उत्तरोत्तर विशुद्ध हैं, इसी प्रकार कृष्णादि लेश्याओं के भाव भी विशुद्ध हैं। सौधर्म आदि देवों में द्रव्य और भावलेश्याएँ समान होती हैं। तीन शुभ लेश्याओं में सम्यक्त्व की विराधना नहीं होती।