बाह्य परिग्रह
क्षेत्र, वास्तु के हिरण्य और सुवर्ण के धन और धान्य के दासी और दास के कुप्य और भाण्ड के भेद से बाह्य परिग्रह दस प्रकार का है। अंतरंग मूर्छा रूप रागादि परिणामों के अनुसार परिग्रह होता है, बहिरंग परिग्रह के अनुसार नहीं। ऊपर का छिलका निकाले बिना चावल का अंतरंग मल नष्ट नहीं होता वैसे ही बाह्य परिग्रह रूप मल जिसके आत्मा में उत्पन्न हुआ है ऐसे आत्मा का कर्ममल नष्ट होना अशक्य है। बाह्य परिग्रह का नियम से त्याग होता है। शुद्धि होने से बहिरंग शुद्धि भी नियम से होती है जैसे हृदय में पाषाण पड़ने से तल भाग में दबा हुआ भी कीचड़ क्षुब्ध होकर ऊपर आता है वैसे ही बाह्यपरिग्रह जीव के प्रशान्त कषायों को भी प्रगट करते हैं।