प्राप्य कर्म
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सामान्यतया कर्ता का कर्म तीन प्रकार का कहा गया है- निर्वर्त्य, विकार्य और प्राप्य | कर्ता जो नया उत्पन्न करता है तथा विकार करके भी नहीं करता, मात्र जिसे प्राप्त करता है (अर्थात् स्वयं उसकी पर्याय) वह कर्ता का प्राप्य कर्म है।
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