प्रवृत्ति
1. प्रमाण से किसी वस्तु को जानकर ज्ञाता के ग्रहण करने या छोड़ने की इच्छा सहित चेष्टा का नाम प्रवृत्ति है। 2. मोक्षमार्ग में की जाने वाली प्रवृत्ति सदा निवृत्तिमूलक होती है। शास्त्र की प्रवृत्ति तीन प्रकार की है- उद्देश्य, लक्षण और परीक्षा । इनमें से पदार्थ के मात्र नाम का कथन करना उद्देश्य कहलाता है। कहे गए पदार्थ के अयथार्थ बोध के निवारण करने वाले गुणधर्म को लक्षण कहते हैं और कहे गए पदार्थ ने जो लक्षण बनाया है वह ठीक है या नहीं इसे प्रमाण के द्वारा निश्चय करके धारण करने को परीक्षा कहते हैं ।