प्रमाद
1. कषाय सहित अवस्था को प्रमाद कहते हैं अथवा संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ और ( हास्य, रति अरति, शोक, भय जुगुप्सा, स्त्री-पुरुष व नपुंसक वेद) नव नोकषाय इन तेरह के तीव्र उदय का नाम प्रमाद है। 2. अच्छे कार्यों के करने में आदरभाव, उत्साह न होना यह भी प्रमाद है। यह अंतरंग में शुद्धात्मानुभव से विचलित करने रूप और बाह्य में मूलगुणों व उत्तरगुणों में मलिनता उत्पन्न करने वाला है। प्रमाद के पन्द्रह भेद हैं चार विकथा, चार कषाय, पाँच इन्द्रिय, एक निद्रा और प्रणय ।