प्रदेश बंध
कर्म रूप से परिणत पुद्गलस्कंधों का परमाणुओं की जानकारी करके निश्चय करना प्रदेश बन्ध है। कुछ प्रकृतियों के कारण भूत प्रति समय योग विशेष से सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाही और स्थित अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु सब आत्म प्रदेशों में सम्बन्ध को प्राप्त होते रहते हैं यह प्रदेश बन्ध ही पाँच रस, पाँच वर्ण, दो गन्ध और शीत आदि चार स्पर्श से परिणत सिद्ध जीवों से अनन्तगुणित हीन तथा अभव्य जीवों से अनन्तगुणित अनन्त प्रदेशी पुद्गल द्रव्य को यह जीव एक समय में ग्रहण करता है प्रदेश बन्ध योग के निमित्त से होता है उत्कृष्ट योग से उत्कृष्ट प्रदेश बन्ध तथा जघन्य योग से जघन्य प्रदेश बन्ध होता है ।