प्रथमानुयोग
1. एक महापुरूष संबंधी या त्रेसठ शलाका पुरूष संबंधी कथा रूप शास्त्र को प्रथमानुयोग कहते हैं। यह पुण्यवर्धक, बोधि समाधि दायक परमार्थ का कथन करने वाला जिनवाणी का प्रमुख अंग है। कथा के माध्यम से धर्म के स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला यह अनुयोग प्राथमिक जीवों के लिए अत्यंत उपकारी है। इसे सुनकर जीवों को सम्यग्दर्शन रूप बोधि और धर्म व शुक्ल ध्यान रूप समाधि की प्राप्ति होती है। इसमें वर्णित कथा वास्तविक होती है, कल्पित नहीं होती। जम्बूस्वामी- चरित्र प्रद्युम्नचरित्र, महापुराण, उत्तरपुराण, पद्मपुराण आदि ग्रंथ प्रथमानुयोग रूप हैं। 2. जो पुराणों का वर्णन करता है वह प्रथमानुयोग है । यह दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग का तीसरा भेद भी है ।