प्रत्येक शरीर
जिस कर्म के निमित्त से एक शरीर का स्वामी एक जीव होता है वह प्रत्येक शरीर नामकर्म है अथवा जिस कर्म के उदय से प्रत्येक अर्थात् एक-एक शरीर के प्रति एक – एक आत्मा हो उसे प्रत्येक शरीर नामकर्म कहते हैं अथवा जिनका प्रत्येक अर्थात् पृथक-पृथक शरीर होता है उन्हें प्रत्येक शरीर जीव कहते हैं। प्रत्येक शरीर जीव बादर ही होते हैं सूक्ष्म नहीं । पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, देव, नारकी, आहारक- शरीरी प्रमत्तसंयत, सयोग केवली और अयोग केवली ये जीव प्रत्येक शरीर वाले होते हैं क्योंकि इनका निगोद जीवों से सम्बन्ध नहीं होता । वनस्पतिकायिक जीव प्रत्येक और साधारण दोनों प्रकार के होते हैं ।