प्रत्याहार
मन की प्रवृत्ति का संकोच कर लेने पर जो मानसिक सन्तोष होता है, उसे प्रत्याहार कहते हैं अथवा जो प्रशान्त भाव वाले मुनि अपनी इन्द्रियाँ और मन को इन्द्रिय-विषयों से हटाकर अपनी इच्छानुसार योग्य स्थान में स्थिर करते हैं, वह प्रत्याहार कहा जाता है। प्रत्याहार से उक्त मुनि ही रागद्वेष रहित होकर ध्यान रूपी तन्त्र में स्थिर हो पाते हैं। यह ध्यान का एक अंग है।