प्रत्याख्यान
प्रत्याख्यान, संयम और महाव्रत ये एकार्थवाची नाम हैं। भविष्य में दोष न होने देने के लिए सन्नद्ध होना प्रत्याख्यान है। अथवा साधु के द्वारा आहार ग्रहण करने के उपरान्त निश्चित काल के लिए जो सब प्रकार के आहार का त्याग कर दिया जाता है वह प्रत्याख्यान कहलाता है। यह साधु का एक मूलगुण है। इसके छह भेद हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । अयोग्य नामों का उच्चारण नहीं करने का संकल्प लेना नाम प्रत्याख्यान है। वीतरागी के सिवाय अन्य किसी प्रतिमा की पूजा नहीं करने का संकल्प लेना स्थापनाप्रत्याख्यान है। अयोग्य आहार व उपकरण आदि ग्रहण न करने का संकल्प करना द्रव्य – प्रत्याख्यान है। संक्लेश उत्पन्न कराने वाले स्थान का त्याग करना क्षेत्र – प्रत्याख्यान है। अयोग्य काल का त्याग करना काल – प्रत्याख्यान है। अशुभ परिणामों के त्याग का संकल्प करना भाव-प्रत्याख्यान है।