प्रत्यभिज्ञान
‘वही यह है इस प्रकार के स्मरण को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि पहले जिस रूप वस्तु को देखा था उसी रूप उसको पुनः देखने से वही यह है ‘ इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता है अथवा प्रत्यक्ष और स्मरण की सहायता से जो जोड़ रूप ज्ञान है वह प्रत्यभिज्ञान है। जैसेयह गवय गौ के समान है या यह वही जिनदत्त है आदि । यह वही है, यह उसके सदृश्य है, यह उससे विलक्षण है, यह उससे दूर है आदि अनेक प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता है। वस्तु में रहने वाली एकता, सादृशता और विसदृशता प्रत्यभिज्ञान के विषय हैं।